रविवार, 27 सितंबर 2015

उड़न तश्तरी

उड़न तश्तरी पास में मेरे
अगर कहीं से आती
घर के सारे लोगों को मैं
दुनिया की सैर कराती।
उड़न तश्तरी पास में मेरे
अगर कहीं से आती।

सारा दिन मजदूरी करके
मां हमको खूब पढ़ाती
उसके कपड़े फ़टे भले हों
पर हमको खूब सजाती।
उड़न तश्तरी पास में मेरे
अगर कहीं से आती।


पहाड़ नदी सागर की बातें
खूब हमें ललचाती
पर मां के हाथों के गट्ठे
देख बहुत घबराती।

उड़न तश्तरी पास में मेरे
अगर कहीं से आती
घर के सारे लोगों को मैं
दुनिया की सैर कराती।
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डा हेमन्त कुमार