रविवार, 22 मार्च 2015

चिड़ियों का अनशन (बाल नाटक)

मुख्य पात्र :नट
         नटी
         कोयल
         सोन चिरैया
         जंगल का ठेकेदार
         शांति(ठेकेदार की बेटी)
         तोता,गौरैय्या,बुलबुल,कौवा,बाज,नीलकंठ और कुछ अन्य पक्षी।
                               दृश्य-1
(नक्कारे की आवाज के साथ ही खाली मंच पर एक तरफ़ से नट और दूसरी ओर से नटी नाचते हुए आते हैं।दोनों बीच में रुक कर इधर उधर देखते हैं।नट पीछे दीवाल की ओर मुंह करके खड़ा होता है। नटी दर्शकों की ओर।)
नट-अरे आज कोई हमारी कहानी सुनने नहीं आयेगा?
(नटी अपने माथे पर दो तीन बार हाथ मारती है फ़िर बीच में बैठ जाती है)
नटी- ओफ़्फ़ोह मै तो इस सूरदास से परेशान हो गयी हूं।
नट-क्या हुआ?क्यों चिल्ला रही हो ?
नटी-(गुस्से में) तुम्हें सामने बैठे लोग नहीं दिख रहे?
           (नट उछल कर दर्शकों की तरफ़ मुंह करता है)
नट-अरेअरे---।
नटी-क्या अरे-अरे कर रहे हो?
नट-ओफ़्फ़ोहमेरा भी दिमाग पता नहीं कहां घूम गया है।(दर्शकों से)श्रीमान जी आप लोग यहां बैठे हैं और मैंने देखा ही नहीं।माफ़ी चाहता हूं।(नटी का हाथ पकड़ कर)अच्छा अब बहुत देर हो चुकी है चलो नाटक शुरू करते हैं।
         (संगीत शुरू होते हैइ दोनों मंच पर थिरकते हैं)
नट-(गाता है)
            एक घना जंगल था बच्चो
            रहती जहां थी ढेरों चिड़ियां
            चीं-चीं चूं-चूं से ही उनकी
            फ़ैली वहां थी ढेरों खुशियां।
 नटी-(गाती है)       
            पर एक जालिम व्यापारी को
            भाई नहीं थी उनकी खुशियां
            काट-काट सुंदर पेड़ों को
            छीन रहा था उनकी खुशियां।
(मंच के एक सिरे पर नट-नटी गाते रहते हैं।दूसरे सिरे पर जंगल का सेट।दो-तीन मजदूर पेड़ काटते दिखाई पड़ते हैं।पक्षी बने कुछ बच्चे मंच पर इधर-उधर भागते दिखायी देते हैं।)
नट-        
           उन सारी चिड़ियों में बच्चों
           कोयल बुद्धिमान थी सबसे।
नटी-
           बड़े बड़े प्रश्नों को भी वो
           हल करती चुटकी में झट से।
नट-
           कोयल ने इक दिन जल्दी से
           सब चिड़ियों को पास बुलाया।
           कटते जाते पेड़ सभी अब
           उसने सबको समझाया।
          (नट नटी नाचते हुये मंच पर से जाते हैं।दृश्य फ़ेड आउट होता है)
                               दृश्य-2
(जंगल का दृश्य। चिड़ियों की सभा।कोयल एक पेड़ के ऊंचे ठूंठ पर बैठी दिखाई दे रही। उसके एक बगल में गौरैय्या दूसरी ओर नीलकंठ बैठे हैं।बुलबुल,तोता,मैना,बाज,कौवा,सोन चिरैया और कुछ पक्षी सामने बैठे हैं।)
कोयल-(कुहू कुहू करके मीठे स्वरों में)मेरी सभी प्यारी सहेलियों और दोस्तों,मैंने आप सब को आज यहां क्यों बुलाया है ये तो आपको पता ही होगा।ये जालिम व्यापारी लकड़ियां बेच कर पैसे कमाने के लिये इस जंगल के सारे पेड़ों को एक-एक कर काटता जा रहा।
मैना-हां बहना,इस तरह तो वो जंगल के सारे पेड़ काट देगा।
तोता-फ़िर हम लोगों को खाने के लिये फ़ल कहां से मिलेंगे?
कौवा-(कांव कांव करके) लो भाई सुन लो इनकी बात। अरे पहले रहने की जगह बचा लो फ़िर फ़लों के बारे में सोचना।
नीलकंठ- हां अगर सारे पेड़ कट गये तो हम सब रहेंगे कहां?
कबूतर- हमारे नन्हें-नन्हें बच्चे कहां फ़ुदकेंगे?
पेंडुकी- और तो और हम अपने अंडे कहां देंगे?
गौरैय्या- कोयल बहना,बात सिर्फ़ जंगल की नहीं है। आज आदमी तो अपने गांवों,शहरों के भी पेड़ काटता जा रहा। इसी तरह पेड़ कटते रहे तो एक दिन ऐसा भी आएगा कि हमें घोसला बनाने की भी जगह नहीं मिलेगी।
कोयल- आप सब ठीक कह रहे हैं। हमें जंगल के ठेकेदार और उसके आदमियों को पेड़ काटने से रोकना होगा।
मैना-(चिंतित स्वरों में) पर यह काम होगा कैसे?
कोयल-हां मैना बहन,यही जानने के लिये ही तो मैंने आप सभी को आज यहां बुलाया है। कि किस तरीके से हम उन्हें रोकें?
              (कुछ पल के लिये शान्ति)
कौवा-(गुस्से में) मैं उन सभी के ऊपर अपने पंजों से हमला कर दूंगा।
कठफ़ोड़वा- मैं अपनी नुकीली चोंच से मार मार कर उन्हें घायल कर दूंगा।
बाज-(घमण्ड भरे स्वरों में) अरे दोस्तों तुम सब को ये करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।मैं उनके लिये अकेला काफ़ी हूं।मैं पेड़ काटने वालों की आंखें नोच कर उन्हें अंधा कर दूंगा।
(कोयल,मैना,तोता एवं अन्य पक्षी उनकी बात सुनते हैं।कोयल कुछ देर सोचती है)
कोयल-शान्त भाइयों शान्तइस तरह क्रोधित होने से काम नहीं चलेगा।ये मत भूलो कि मनुष्य हमसे ज्यादा चालाक और ताकतवर है। हम उसे लड़ कर नहीं हरा सकते।
बाज-तो क्या हम हाथ पर हाथ रखे बैठे रहें?और अपना विनाश देखते रहें?
कोयल-नहीं मैं यह नहीं कह रही। हमें कोई दूसरा रास्ता ढूंढ़ना होगा।
कौवा-(व्यंग्य से)-तो फ़िर तुम्हीं बताओ कोयल रानी।
(कोयल सोचने की मुद्रा में अपने पंजों से सर खुजलाती है फ़िर अपने पंख फ़ड़फ़ड़ाती है।)
सोन चिरैया-(संकोच से) मैं कुछ कहूं कोयल बहना?
कोयल-हां हांबताओ बताओतुम हो तो नन्हीं सी पर तुम्हारा दिमाग सबसे तेज है।
सोन चिरैया-(गाती है)-  चीं चीं चीं चीं
                    चीं चीं चीं चीं
                    याद करें इतिहास जरा हम
                    याद करें बापू की माया
                    गांधी बाबा ने अनशन से
                    गोरों को था दूर भगाया।
                    क्यों ना हम भी मिल कर कोई
                    नई अनोखी राह बनाएं
                    पेड़ों का कटना भी रोकें
                    अपने घर जंगल को बचाएं।
कोयल-(सोचते हुए) बात तो तुम्हारी ठीक है सोन चिरैया।पर हम कौन सा ऐसा रास्ता बनाएं?जिससे व्यापारी की समझ में हम चिड़ियों के दुख और मुसीबतें आ सकें?
सोन चिरैया-(सोचते हुये)बहनामैंने तरीका सोच लिया है।
कौवा-तो जल्दी बताओ सोन चिरैया---।
सोन चिरैया-सुनो साथियों इन मनुष्यों को हमारी बोलीमधुर स्वर बहुत अच्छी लगती है।अगर हम कुछ समय के लिये चहकना छोड़ कर मौन का व्रत कर लें तो?
कौवातोफ़िर इससे क्या होगा?
कोयल-(खुश होकर)बात तो तुम्हारी ठीक है।पर इससे मनुष्य पेड़ काटना बंद कर देगा?
तोता-पेड़ काटना बंद तो नहीं करेगाहां वो ये सोचेगा जरूर कि अचानक इन चिड़ियों ने गाना क्यों बंद कर दिया?
कौवा-हो सकता है उसके मन में हमारी तकलीफ़ों की बात भी आ जाय।
नीलकंठमैं भी सोन चिरैया की बातों से सहमत हूं।
कोयल-तो दोस्तों आप सभी कल से मौन का व्रत रखने को तैयार हैं?
सारे पक्षी-(समवेत स्वरों में) हां हम सभी तैयार हैं।कल से ही हमारा चहकना बंद।
           (सारे पक्षी अपने घोसलों की ओर जाते हैं।
                           दृश्य-3
(ठेकेदार के घर का बगीचा।कई चिड़िया पेड़ों पर बैठी हैं पर चुप हैं।कोई चहक नहीं रही।शांति हाथ में चावल का कटोरा लेकर आती है।पेड़ के नीचे बिखेरती है।पर कोई चिड़िया चावल चुगने नहीं आती हैं।न ही चहकती है।)
शांति-(अपने आप से बोलती है)-अरे आज इन चिड़ियों को क्या हो गया?कोई पास नहीं आ रही।कल तक तो चिल्ला चिल्ला कर टूट पड़ती थीं चावल के दानों पर।कहीं बीमार तो नहीं?
(ठेकेदार का प्रवेश)
ठेकेदार-अरे शांति तू किससे बातें कर रही?
शांति-(चिंतित स्वरों में)देखिये न बापूकोई चिड़िया दाना नहीं खा रहीन ही चहक रही।
ठेकेदार-अरे तुझे खिलाना नहीं आता।ये देख अभी सब खायेंगी भी और चहकेंगी भी।
(ठेकेदार एक मुट्ठी में चावल लेकर चिड़ियों की तरफ़ उछालता है।पर कोई चिड़िया पेड़ से नहीं उतरती।ठेकेदार उनकी तरफ़ आश्चर्य से देखता है।)
ठेकेदार-अरे क्या हो गया इन सभी को अचानक?कोई आवाज भी नहीं कर रहीं।कहीं बीमार तो नहीं हो गयीं?
(अचानक ठेकेदार के सामने पहले एक गौरैया फ़िर दूसरी कैइ चिड़िया आकर बैठ जाती हैं।ठेकेदार जमीन पर बैठ कर उनकी तरफ़ ध्यान से देखता है।सबकी आंखों में आंसू।सब सर नीचा किये हैं।शान्ति भी बैठ जाती है।)
शांति-(दुख भरे स्वरों में) अरे बापू ये तो रो रही हैं।---सब की सब---।
ठेकेदार-(परेशान स्वर में) पर इन्हें हुआ क्या है?
 (गौरैया और दूसरी चिड़िया सर उठाती हैं।सब सामने एक कटे हुये पेड़ के ठूंठ की तरफ़ दुखी हो कर देखती हैं।ठेकेदार और शांति भी उधर ही देखते हैं।)
शांतिकहीं इस काटे गये पेड़ पर ही इनका घोसला तो नहीं था?
ठेकेदार(चिन्तित मुद्रा में) ओह अब समझा---क्यों गुस्सा हैं ये चिड़िया लोग?शांति बिटिया अनजाने में मुझसे बहुत बड़ी भूल हो रही थी।
शांति-(आश्चर्य से) कैसी भूल बापू?
ठेकेदार(दुखी मन से)बिटिया इसमें गलती इनकी नहीं।मेरी गलती है।मैं ही पैसों के लालच में पेड़ों को कटवा कर इनके घर उजाड़ रहा था।मैं पैसों के पीछे पागल हो गया था।---ओहये क्या पाप कर रहा था मैं।इतने पक्षियों के घर छीन रहा था?
  (ठेकेदार खड़ा हो जाता है,उसी के साथ शांति भी। चिड़िया उसी तरह दुखी बैठी हैं)
ठेकेदार-(पश्चाताप से)हे ईश्वर मुझे माफ़ कर दोअब और नहीं---आज के बाद से मैं किसी चिड़िया का नीड़ नहीं उजाड़ूंगा।कोई पेड़ नहीं काटूंगा---कोई नहीं।(गौरैया को सहला कर) जाओ गौरैया---जाओ चिड़ियासारे पक्षियों से कह दो अब आज के बाद से कोई पेड़ नहीं कटेगा।
     (शांति आश्चर्य से ठेकेदार को देखती है।कई चिड़िया और गौरैया आकर चीं चीं
     करती हुयी चावल खाने लगती हैं।कुछ उड़ कर जंगल की ओर जाती हैं।)
दृश्य-4
 (जंगल का दृश्य।मधुर संगीत।हरे भरे पेड़ों के बीच ठेकेदार और उसकी बेटी शांति नाचते दिखायी दे रहे।उनके चारों ओर पक्षी बने बच्चे उड़ने का अभिनय कर रहे।)
शांति(गाती है)
               देखो बापू सुन लो बापू
               बात को पूरी समझ लो बापू।
               जिन पेड़ों को काट रहे थे
               वहीं बसी थीं चिड़ियां सारी
               पर अब उनको मिला अभय जो
               चहक रही फ़िर चिड़िया सारी।
ठेकेदार--        बेटी मैं था गलत राह पर
               सबने सच्ची राह दिखाया
               मुझसे पाप बड़ा था होता
               पर चिड़ियों ने मुझे बचाया।
              (शांति,ठेकेदार गोल घेरे में घूमते हैं।उनके चारों ओर कुछ चिड़िया भी फ़ुदकती घूम रहीं।मंच के एक तरफ़ से नट और दूसरी तरफ़ से नटी भी नाचते हुयी आती हैं और उन्हीं के साथ नाचते हैं।)
नट(गाता है)        
             मौन रखा सारी चिड़ियों ने
             उसका मीठा फ़ल भी पाया।
नटी(गाती है)
             खुशहाल किया जंगल को फ़िर से
             मानव को भी मार्ग दिखाया।
              (सभी साथ में गाते हैं)
ठेकेदार--      मौन रखा सारी चिड़ियों ने
             उसका मीठा फ़ल भी पाया।
शांति--        खुशहाल किया जंगल को फ़िर से
             मानव को भी राह दिखाया।
कोरस--      खुशहाल किया जंगल को फ़िर से
            मानव को भी राह दिखाया।
(सब गोल घेरे में घूमते हुये गाते रहते हैं।धीरे धीरे उनका स्वर धीमा होता जाता है। और संगीत के साथ ही प्रकश कम होता जाता है।दृश्य फ़ेड आउट होता है।)
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लेखक--डा0हेमन्त कुमार

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

सुनहले मोर( बाल कहानी)

दूर तक फ़ैला हुआ एक घना जंगल था।बहुत पहले भी ऐसा ही हरा भरा था।आज भी है।मगर पहले वहां पशु पक्षियों का शोर गूंजता रहता था।पक्षियों में सबसे ज्यादा मोर रहते थे।इन मोरों के कारण उसे मोर वन भी कहा जाता था।वहां पर तरह तरह के फ़ूल खिले रहते थे।पेड़ों पर फ़ल ही फ़ल दिखाई पड़ते थे।
       जंगल के बीच में एक बड़ी झील थी।उसमें कमल खिले रहते थे।बत्तखें तैरती रहती थीं।कमलों पर भौंरे अपना संगीत सुनाते रहते थे।पर आज जो जंगल हैउसमें यह सब कुछ नहीं हैं। न पक्षी,न पशु।सब जंगल छोड़ चुके हैं।किसी भी पेड़ पर न तो फ़ूल न फ़ल।मोर तो एक भी नहीं रहे।झील सूख गई।फ़िर कमल और बत्तखें कहां दिखाई पड़तीं।जंगल में एक सन्नाटा छाया रहता है।लोग उधर जाते हुये भी डरते हैं।
        आठ दस साल पहले उस जंगल में सुनहले पंखों वाले मोरों का एक जोड़ा आया था।वे मोर लोक के राजा रानी थे।इस वन की प्रशंसा सुन कर इसे देखने आए थे।
    गांव के एक आदमी ने इन मोरों को देखा तो उसके मन में लालच समा गयी।अगर मैं नर मोर के पंखों को राजा को भेंट कर दूं तो वे प्रसन्न हो जाएंगे।मुझे ढेरों इनाम मिलेगा।इसी लालच में उसने एक इतने सुन्दर मोर को मार डाला।
    मगर हुआ उलटा।राजा गुस्से से चीख कर बोले—“अरे दुष्ट तूने यह क्या किया?मोर तो हमारे देश का राष्ट्रीय पक्षी है।इसे मारना अपराध है।थोड़े इनाम के लालच में तूने इतने सुन्दर पक्षी को मार डाला।कहकर उन्होंने उसे कारागार में डाल दिया।
        उसके बाद रानी मोरनी अपने मोर लोक को लौट गई।फ़िर उसके पीछे सारे मोर भी निकल गये।इसी तरह एक एक कर सारे पशु पक्षी जंगल से भागने लगे।फ़ूल खिलने बंद हो गये।झील सूख गयी।यहां तक कि पत्तियों ने हवा चलने पर सरसराहट करना बंद कर दिया।एकदम सन्नाटा छा गया।
   एक दिन बड़ा अचंभा हुआ।लोगों को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। सुनहले पंखों वाला एक मोर पूरे गांव की छतों पर इधर उधर फ़ुदक रहा था।जो भी देखता हैरान रह जाता।पूरे जंगल में एक भी प।क्षी पशु नहीं बचा था।फ़िर यह अकेला मोर कहां से आया?
       सब से बढ़ कर आश्चर्य तो तब हुआ जब वह मनुष्यों की बोली में बोला—“गांव वालों,याद करो कुछ साल पहले तुम लोगों ने मोरों के राजा को मारने का अपराध किया था।तब से यह जंगल तबाह हो गया।अभी जो पेड़ हरे भरे हैं वे भी कुछ दिनों में सूख जाएंगे।गांव के लोग अकाल से मरने लगेंगे।
     डर कर एक ग्रामीण ने पूछा—“तुम कौन हो भाई?
   मैं मोर लोक से आया हूं।मुझे रानी ने भेजा है।रानी अब बूढ़ी हो चली हैं।उन्हें किसी की सहायता चाहिये।अगर तुम लोगों में से कोई अपना एक बच्चा दे दे तो अच्छा होगा।सब पहले जैसा ठीक हो जाएगा।
    सुनते ही सब लोग सन्न रह गये।भला मोर लोक भेजने को कौन अपना बच्चा देना चाहेगा।
   मोर फ़िर बोला—“तुम लोगों के पास सोचने के लिये दो दिन का समय है।वरना परसों से ही बरबादी शुरु हो जाएगी।यह रानी का श्राप समझो।इससे तुम्हें भगवान भी नहीं बचा सकता।
    लोग और भी डर गये।मगर इतना बड़ा त्याग करने का साहस किसी में नहीं था।
  
उसी गांव में आनन्दी नाम की एक औरत रहती थी।उसके पांच छः साल का एक छोटा अकेला लड़का था जयदेव।जयदेव के बिना वह एक मिनट नहीं रह सकती थी।मगर पूरे गांव में ऐसी दयालु औरत और कोई नहीं थी।उसने सोचा—अगर मैं जयदेव को दे दूं तो पूरा गांव बच जाएगा।जंगल पहले की तरह हो जाएगा।कुछ सोच कर उसने जयदेव से इसके बारे में पूछा।
        मातृ भक्त जयदेव बोला—“मां,तुम जो चाहती हो वह मुझे सहर्ष स्वीकार है।मेरे चले जाने से इतने लोगों का भला होगा।इससे अच्छा और क्या हो सकता है।
   आनन्दी ने मोर से कहा---मेरा जयदेव जायेगा। मगर मुझे करना क्या होगा?
   मोर प्रसन्न होकर बोला—“तुम आज रात को अपने बेटे को  जंगल के वट वृक्ष के नीचे छोड़ आना।इसे रानी तक पहुंचाना मेरा काम है।
     आनन्दी ने वैसा ही किया।आनन्दी को बेटे से बिछुड़ने का बड़ा दुख हुआ।लेकिन पूरे गांव और जंगल के कल्याण के लिये उसने इससे संतोष कर लिया।
   अगले दो दिन में ही सचमुच जंगल की पहले वाली शोभा लौट आई।लोगों की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा।यह सब मां बेटे के त्याग का फ़ल था।दिन बीतते देर नहीं लगी।पन्द्रह बीस साल गुज़र गये।आनन्दी अब बूढ़ी हो चली थी।
      अचानक एक दिन फ़ूलों से सजी एक सुन्दर पालकी गांव में पहुंची।वह सीधे आनन्दी के घर पर पहुंच कर रुकी।देखने वालों की भीड़ लग गई।आनन्दी भी लाठी लेकर घर से बाहर निकली।
    पालकी में से एक सुन्दर युवक और युवती नीचे उतरे।सब आश्चर्य में थे---आखिर ये हैं कौन?और यहां क्यों आए हैं?
     तभी युवक और युवती ने झुक कर आनन्दी के पांव छुए।फ़िर युवक बोला—“मां मैं तुम्हारा बेटा जयदेव हूं।यह तुम्हारी बहू है।मोर लोक की रानी अब नहीं रहीं।मगर जाने से पहले उसने वहां की राजकुमारी से मेरा विवाह कर दिया। फ़िर अपार धन के साथ मुझे और राजकुमारी को आपके पास भेजा है।
         पूरा गांव धन्य धन्य कहने लगा।आनन्दी और जयदेव के त्याग से ही आज पूरा गांव और जंगल प्रसन्नता में डूब गये।हर कोई उनकी प्रशंसा कर रहा था।रानी ने एक विशेष सौगात के रूप में अपने दरबार का एक सबसे सुंदर मोरों का जोड़ा भेजा था।ये मोर भी सुनहले थे।लोगों ने कहा—“ये मोर हमारे जंगल के राजा रानी होंगे।लोगों को एक और चेतावनी दी गई।अब किसी ने जंगल के किसी प्राणी को हानि पहुंचाई तो उसे कठोर दण्ड दिया जाएगा।
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प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव 
 11मार्च,1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्म।शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम0ए0।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।पिछले छः दशकों से साहित्य सृजन मे संलग्न।देश की प्रमुख स्थापित पत्र पत्रिकाओं सरस्वती,कल्पना,प्रसाद,ज्ञानोदय,साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,कहानी,नई कहानी,विशाल भारत, आदि  में कहानियों,नाटकों,लेखों,तथा रेडियो नाटकों,रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।बाल कहानियों,नाटकों,लेखों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950 के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र आज 86 वर्ष की उम्र में भी जारी है। अभी हाल में ही नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया से बाल उपन्यास मौत के चंगुल में प्रकाशित।

गुरुवार, 5 मार्च 2015

होली आई

(फ़ोटो-गूगल से साभार)
रंग बिरंगी होली आई,
गुझिया और कचौड़ी लाई।
घर-घर होती तैयारी,
हंसी ठिठोली करती आई।

(फ़ोटो-गूगल से साभार)
सारे बच्चे खुशी मनाते,
धमा चौकड़ी खुब मचाते।
पिचकारी में रंग  भरे हैं
बब्लू मुन्नी खूब चलाते।


होली सबको है समझाती,
जाति धर्म का भेद मिटाती।
मिल जुल कर तुम रहना सीखो,
मानवता का पाठ पढाती।
(फ़ोटो-गूगल से साभार)
 रंगों की बस एक भाषा,
प्यार-मोहब्बत जीवन-आशा।
सबको प्रेम से गले लगाओ
अकबर,रामू प्यारे जानी।

रंग बिरंगी होली आई,
गुझिया और कचौड़ी लाई।
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कवि-अजय कुमार मिश्र "अजयश्री "
ग़ीत एवं नाट्य अधिकारी
राज्य सूचना शिक्षा एवं संचार ब्यूरो
परिवार कल्याण विभाग,उत्तर प्रदेश।
मोबाइल-09415017598 
ईमेल-ajayshree30@ymail.com