सोमवार, 17 नवंबर 2014

सर्कस से भागा जब भालू----।

सर्कस से भागा इक भालू
साथ में उसके बंदर कालू
भालू के था हाथ में सोटा
सीटी लिये था साथ में कालू।

चौराहे पर जाम दिखा तो
पहुंचे पुलिस बूथ पर दोनों
बंदर सीटी बजा रहा था
सोटा ले के जुट गया भालू।

सारे पुलिस बूथ से भागे
नया दरोगा सबसे आगे
बंदर भालू ने जल्दी से
जाम हटा के सड़क की चालू।
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डा0हेमन्त कुमार

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

बाल दिवस और चाचा नेहरू

                           

                   
14 नवम्बर का दिन सारे भारतवर्ष में स्वर्गीय पं0 जवाहर लाल नेहरू जी के जन्म-दिन तथा बाल-दिवस के रूप में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।नेहरू जी के हृदय में बच्चों के लिए असीम स्नेह था।नेहरू जी बच्चों को जितना प्यार करते थे उससे कहीं अधिक बच्चे उन्हें प्यार करते थे।बच्चे उनमें इतनी अधिक आत्मीयता का अनुभव करते थे कि वे उन्हें प्यार से चाचा-नेहरू कहने लगे। यदि आप किसी बच्चे से यह पूछें कि 14 नवम्बर को क्या है ? तो वह तुरन्त ही आपसे कहेगा कि उस दिन हम सबके चाचा नेहरू का जन्म दिन है।
         वास्तव में नेहरू जी ही संसार में सम्भवतः एक ऐसे महापुरूष हुए हैं जिनके नाम पर करोड़ों बच्चे अपना उत्सव दिवस मनाते हैं।वैसे तो विश्व में अनेक ऐसे महापुरूष हुए हैं जिन्होंने बालहित के बहुत से कार्य किये हैं।उदाहरण के लिए शिक्षा के क्षेत्र में मैरिया मान्टेसरी और जान ड्यूक का बहुत बड़ा योगदान रहा है।इन शिक्षा-शास्त्रियों ने बाल शिक्षा के स्वरूप् को बिल्कुल ही बदल दिया।लेकिन नेहरू जी ने बच्चों को जो स्नेह, जो प्यार दिया वह शायद कोई नहीं दे सका।नेहरू जी जब कभी भी बच्चों से मिलते थे उनका चेहरा खिल उठता था, उनकी उदासी छंट जाती थी।यही कारण है कि 14 नवम्बर उनका जन्म-दिवस बाल-दिवस के रूप में पूरे भारत में बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
       नेहरू जी ने एक स्थान पर स्वयं लिखा है कि, ‘‘ बच्चों के बीच आत्मा के सारे द्वार खुल जाते हैं, मन के सारे प्रवाह मुक्त हो जाते हैं, मैं अपने जीवन को बोझ से मुक्त करने के लिए बच्चों के निकट जाता हूं। मेरी थकान, मेरे मन की क्लान्ति इन शुद्ध-बुद्ध फरिश्तों के बीच ही दूर होती है-- काफी खोज के बाद इस राज को मैंने हासिल किया है।
    उन्हें बच्चों से इतना अधिक स्नेह था कि भारतवर्ष जैसे महान देश के प्रधानमन्त्री पद पर होने के कारण, अपने अत्यन्त व्यस्त जीवन में से भी नेहरू जी बच्चों से मिलने, उनके साथ खेलने-कूदने तथा उन्हें ज्ञान की बातें बताने के लिए समय निकाल लेते थे।नेहरू जी जिस समय बच्चों के बीच पहुंचते थे वे यह भूल जाते थे कि वे एक देश के प्रधानमन्त्री हैं। वे स्वयं को भी बच्चा ही समझने लगते थे।नेहरू जी बच्चों के साथ क्रिकेट भी खेलते थे, कबड्डी भी खेलते थे, वे बच्चों के साथ हरी-हरी घास में दौड़ते भी थे और छोटे-छोटे बच्चों की भांति रंग-बिरंगी तितलियों को पकड़ने भी दौड़ पड़ते थे।जब तक नेहरू जी जीवित रहे वे हर 14 नवम्बर को बच्चों से जरूर मिलते थे।इस दिन बच्चे भी अपने प्यारे चाचा नेहरू को उनका प्यारा गुलाब का फूल भेंट करते थे और नेहरू जी अपने जन्म-दिन के अवसर पर बच्चों को तरह-तरह की चीजें भेंट करते और बाल-दिवस का दिन चाचा नेहरू जिन्दाबाद के नारों से गूंज उठता था।
       
नेहरू जी हमेशा दूर की बात सोचते थे।वे जानते थे कि आज के बच्चे ही कल के नेता होंगे और उनके द्वारा ही भारतवर्ष के भविष्य का निर्माण होगा। इसीलिए उनका कहना था कि ‘‘यदि हमें देश में खुशहाली लानी है तो इसकी शुरूआत बच्चों से ही होनी चाहिए। वे बच्चों को हमेशा अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह देते थे।वे उनमें ही भारत की खुशहाली के बीज देखते थे।उन्हें हमेशा मेहनत करने की बात समझाते थे।सन् 19580 में बाल-भवन की नींव रखते हुए नेहरू जी ने कहा था-- ‘‘मां-बाप को चाहिए कि बच्चों को अपनी जिम्मेदारी समझने दें जो अपने लिए खुद काम नहीं कर सकता वह दूसरों के लिए क्या काम करेगा ?
देश के बच्चे चाचा नेहरू को कभी भी नहीं भूल सकते। उन्हें उनके उपदेश, उनकी बातें सब पूरी तरह याद हैं। नेहरू जी का जीवन उनके लिए एक आदर्श है। पंडित नेहरू का अंग्रेजी में लिखा एक निबन्ध ‘‘मेरे प्यारे बच्चों (माई डियर चिल्ड्रेन) जो बच्चों के नाम है, एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
       नेहरू जी का विचार था कि बालक अपने भावपूर्ण नेत्रों में कुछ सपने लिए रहता है। उन सपनों की पूर्ति ही बालक का व्यक्तित्व है और उसकी पूर्ति निर्भर है अभिभावकों अथवा उनके माता-पिता पर।बालक के व्यक्तित्व का निर्माण माता-पिता के पारस्परिक सम्बन्ध तथा बालक के प्रति स्नेह प्रदर्शन से लेकर स्कूली शिक्षा तथा उन बाल-पुस्तकों पर निर्भर करता है, जिन्हें वह पढ़ता है। माता-पिता जहां स्नेह की मूर्ति होते हैं वहीं शिक्षक भी होते हैं।वे बालकों को प्रत्यक्ष शिक्षा देते हैं।
        बालक के विकास के दो प्रमुख पहलू हैं--शारीरिक और मानसिक।मानसिक विकास शारीरिक विकास से अधिक महत्वपूर्ण है।किन्तु शारीरिक विकास भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। बालक का शारीरिक विकास उसके उचित पोषण, खेल-कूद, खुले वातावरण तथा चिकित्सा पर निर्भर है।स्वस्थ रहने के लिए जहां बच्चे को उचित पोषण देना, स्वस्थ वातावरण में रखना आवश्यक है वहीं उसके लिए खेल-कूद भी जरूरी है।खेल-कूद से बालक में संयम तथा उत्तरदायित्व की भावना बढ़ती है। गांधी जी भी बच्चों के खेल-कूद पर बड़ा बल देते थे। उन्होंने एक लेख में लिखा था।‘‘बच्चों के लिए खेलना जरूरी है।खेल-कूद से अधिक श्रम और संयम से काम करने का बल मिलता है।
             बच्चों के मानसिक विकास की समस्या अधिक पेचीदी है।इसकी व्यवस्था का उत्तरदायित्व बड़े लोगों, अभिभावकों या माता-पिता, परिवार तथा समाज पर होता है। बालक के भावी सामाजिक जीवन की नींव छोटी-छोटी घटनाओं से पड़ती है।परिवार में बालक सामाजिक मूल्यों के प्रति आस्था भी सीखता है और अनास्था भी।अतः अच्छा नागरिक बनने के लिए यह आवश्यक है कि बालक स्वस्थ समाज में ही बड़ा हो।
         यदि बालक को स्नेह, सौहार्द्र, त्याग एवं बलिदान की शिक्षा दी जाय, तो वह योग्य नागरिक, कर्मठ कार्यकर्ता तथा निष्काम समाजसेवी बन सकता है।विकास की प्रक्रिया उसी क्षण से आरम्भ हो जाती है जब शिशु धरती पर आंखें खोलता है।नेहरू जी का भी विचार था कि बालक में विशिष्ट गुणों का समावेश समाज को स्वयं सुन्दर बना सकता है।
    समाज देश के उत्थान की मुख्य इकाई है।यदि हम देश का कल्याण चाहते हैं तो हमें स्वस्थ समाज की रचाना करनी होगी और वह तभी सम्भव होगा जब हम आज से ही इन नन्हें-मुन्ने बच्चों को अच्छा नागरिक बनाने के लिए पूरी तरह से जुट जाएं। इस कार्य को पूरा करने के लिए मां-बाप, परिवार, समाज तथा शासन सभी का सहयोग मिलेगा तभी इसका फल प्राप्त होगा।
         बच्चों को चाहिए कि वह अपने प्रिय चाचा नेहरू के आदर्शों का पालन कर अच्छे नागरिक बनें और देश की, समाज की सेवा करें।तथा अपने जीवन में कुछ ऐसे महान कार्य करें जिससे उनके तथा हम सबके प्यारे भारत देश का मस्तक गर्व से और ऊंचा हो जाय। नेहरू जी को बच्चों पर बड़ा भरोसा था। एक बार उन्होंने कहा था, ‘‘प्यारे बच्चों ! लो यह सबसे बड़ा तोहफा मैं तुम्हें देता हूं-- हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक का हिन्दुस्तान--इसे सम्भालों। इस तोहफे की हर बच्चे को जी जान से रखवाली करने है तथा अपने आचरण और कार्य कलापों से अपने चाचा नेहरू के उस स्वर्णिम भारत के स्वप्न को पूरा करना है जिसके लिए वे जीवन भर लड़ते रहे।
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ड़ा0हेमन्त कुमार

मंगलवार, 11 नवंबर 2014

हमारा प्यारा गांव

   छोटे छोटे बच्चों द्वारा अपने गांव को आदर्श गांव बनाने की कहानी