सोमवार, 23 अगस्त 2010

मुनमुन चुहिया ने बिल्ले को राखी बांधी


          एक गांव के किनारे एक खेत था। खेत में चूहों के कई परिवार रहते थे। सारे चूहे चुहिया रात में अपनी बिलों से निकलते और घूम घूम कर अनाज खाते।।दिन में सब अपनी बिलों में घुसे रहते। वक्त जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की सहायता करते थे।
          उसी खेत में मुनमुन चुहिया भी अपने मम्मी पापा के साथ रहती थी। मुनमुन पढ़ने लिखने, खेलकूद हर चीज में तेज थी। सभी उसकी तारीफ करते थे।फिर भी मुनमुन अक्सर उदास रहती।उसकी उदासी का सबसे बड़ा कारण यह था कि वह मां बाप की अकेली लड़की थी।उसके कोई भाई नहीं था।
               हर साल राखी का दिन आने पर सारी चुहिया लोग अपने-अपने भाइयों को राखी बांधती थी। पर मुनमुन अपनी बिल में उदास बैठी रहती। इस बात का दुःख उसके मम्मी पापा को भी होता था।
         इस साल भी राखी वाले दिन मुनमुन खेत में एक तरफ उदास बैठी थी। सुबह से ही हर चुहिया अपने भाई को राखी बांध रही थी। सारे चूहे अपने अपने गले में सुन्दर राखियां बॅंधवाए घूम रहे थे। बेचारी मुनमुन अकेली बैठी चूहों चुहियों को आते जाते देख रही थी।मुनमुन को वहां बैठे दो तीन घण्टे हो चुके थे।।उसी समय मोती कुत्ता उधर टहलाता हुआ आ गया। मोती ने मुनमुन को अकेले बैठा देखा तो उसके पास चला आया। मोती ने मुनमुन से पूछा-

मुनमुन रानी मुनमुन रानी
क्यों बैठी हो यहां अकेले
मुझे सुनाओ अपनी कहानी।

            मुनमुन दुःखी मन से बोली, ‘

कुत्ते भाई कुत्ते भाई
मैं अकेली कुत्ते भाई
नहीं है मेरा कोई भाई,
किसको राखी बांधू भाई
क्या तुम बनोगे मेरे भाई,
मुझसे राखी बंधवाओ भाई
      मुनमुन की बात सुनकर मोती कुत्ता हंसने लगा।वह थोड़ी देर तक हंसता रहा।फिर बोला,         
मुनमुन रानी मुनमुन रानी
तुम चुहिया हो, मैं कुत्ता हूँ
कैसे बनूं तुम्हारा भाई,
चूहे को किसी बना लो भाई
उसी को राखी बांधो भाई।
                       मोती की बात सुन कर मुनमुन और दुःखी हो गयी। मोती अपनी दुम हिलाता हुआ वहां से चला गया। मुनमुन वहीं बैठी रही।
          थोड़ी देर बाद ही वहां घूमता घामता मटरू बछड़ा आ गया। मुनमुन उसे देख थोड़ा खुश हुई। उसने सोचा शायद यह मेरा भाई बन जाएगा। जब वह नजदीक आ गया तो मुनमुन ने उससे भी वही बात कही। पर मटरू तो और शैतान निकला। वह बोला,

तू है काली छोटी चुहिया
मैं हूं गोरा तगड़ा बछड़ा
क्यों बनूं मैं तेरा भाई,
बिल्ले को ही बना लो भाई
         बिल्ले का नाम सुनते ही मुनमुन डर गयी। मटरू बछड़ा उछलता कूदता वहां से दूर चला गया। मुनमुन ने सोचा मैं अब घर वापस चलूं। कहीं सममुच कोई बिल्ला यहां न आ जाए। वह वहां से जाने ही वाली थी कि सचमुच में वहां कालू बिल्ला आ गया। उसे देख मुनमुन डर गयी। कालू बिल्ला नजदीक आ गया और बोला,

मुनमुन रानी मुनमुन रानी,
क्यों बैठी हो यहां अकेली
मुझे बताओ अपनी कहानी।

                  मुनमुन पहले तो चुप रही। फिर डरते डरते बोली,

बिल्ले भाई बिल्ले भाई,
मैं अकेली बिल्ले भाई,
नहीं है मेरे कोई भाई,
किसको राखी बॉंधू भाई,
क्या तुम बनोगे मेरे भाई,
मुझसे राखी बंधवा लो भाई
        मुनमुन की बात सुनकर कालू बिल्ले की आंखों में आंसू आ गये। वह भरे गले से बोला,

मुनमुन रानी मुनमुन रानी
मैं भी तो मां बाप का अकेला
नहीं है मेरी कोई बहना,
खुशियां सारी मुझे मिलेगी
तुम बन जाओ यदि मेरी बहना।
जाओ जल्दी राखी लाओ,
बांधो मुझको मेरी बहना।
कालू बिल्ले की बात सुनते ही मुनमुन चुहिया खुशी से रोने लगी। वह जल्दी से भाग कर अपनी बिल में गयी। उसने वहां अपने पापा मम्मी को भी यह खुश-खबरी दी। और एक तश्तरी में राखी, फूल, रोली, मिठाई वगैरह सजा कर ले आई। पीछे पीछे उसके मम्मी पापा भी आ गये। कालू बिल्ला खेत में बैठा उसका इन्तजार कर रहा था। मुनमुन राखी ले कर आई तो कालू उसके सामने आकर बैठ गया। मुनमुन ने पहले उसके माथे पर तिलक लगाया। फिर उसके अगले पंजे में उसने राखी बांधी। राखी बांध कर मुनमुन ने एक खोए का लड्डू कालू बिल्ले के मुंह में डाल दिया। कालू ने भी इमरती का एक छोटा टुकड़ा मुनमुन के मुंह में रख दिया। दोनों मिठाईयॉं खा रहे थे। मारे खुशी के भाई बहन दोनों की आंखों में आंसू आ गये।
     पास में ही खड़े मुनमुन के मम्मी पापा और दूसरे चूहे चुहिया भाई बहन के इस सुखद मिलन को आश्चर्य से देख रहे थे।
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हेमन्त कुमा