शनिवार, 27 मार्च 2010

खुली खुली खिड़की सी दीदी





खुली खुली खिड़की तुम हमको
च्छी बहुत बहुत लगती हो
हमको तो तुम प्यारी प्यारी
बिलकुल दीदी सी लगती हो।

जैसे बिजली के जाने पर
दीदी हमको पंखा झलती
तुम भी खिड़की हवा भेजकर
वैसे ही तो पंखा झलती।
 
जब हम होते कुछ उदास तो
हमको नींद नहीं है आती
तो कहानियों के मेले में
दीदी हमको सैर कराती।

खिड़की तुम भी आसमान का
नीला टुकड़ा हमें दिखाती
जिस पर बिठा बिठा कर जाने
कहां कहां की सैर कराती।
000
दिविक रमेश
श्री दिविक रमेश हिन्दी साहित्य  के प्रतिष्ठित कथाकार,कवि,एवम बाल साहित्यकार हैं।
आपकी अब तक कविता,आलोचनात्मक निबन्धों,बाल कहानियों,बालगीतों की 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।तथा आप कई राष्ट्रीय एवम अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किये जा चुके हैं।वर्तमान समय में आप दिल्ली युनिवर्सिटी से सम्बद्ध मोती लाल नेहरू कालेज में प्राचार्य पद पर कार्यरत हैं।
हेमन्त कुमार द्वारा प्रकाशित

शनिवार, 20 मार्च 2010

मेरी प्यारी गौरैया

रोज सुबह आती गौरैया

गीत नये गाती गौरैया

उठ जाओ तुम नित्या रानी

कह के मुझे जगाती गौरैया।


चीं चीं चूं चूं मीठी बोली

दाना मांग रही गौरैया

अम्मा जल्दी दे दो चावल

भूखी है प्यारी गौरैया।


पंख छपक कर पानी में तो

रोज नहाती है गौरैया

चोंच रगड़कर पेड़ की डाली

चावल चुनती ये गौरैया।


झूला झूलूं बाग में जब भी

चुपके से आती गौरैया

उड़ उड़ मेरे चारों ओर

खुशी से इतराती गौरैया।
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कवियत्री:नित्या शेफ़ाली

रविवार, 7 मार्च 2010

गोरी गोरी कोयल



कोयल ने जब शीशा देखा
हो गई वह तो बहुत उदास
गोरी मैं कैसे बन जाऊं
सोच के पहुंची वैद के पास।

भालू वैद ने कूट पीस कर
दे दी ढेरों क्रीम दवायें
फ़ीस दवा की कीमत उसने
वसूले पूरे दो सौ पचास।

क्रीम दवायें लगा लगा कर
सुन्दर पंख झड़े कोयल के
तौबा की उसने शीशे से
फ़िर से दौड़ी वैद के पास।

फ़ेंक दवायें क्रीम सभी वह
गुस्से में भालू से बोली
गोरी नहीं है बनना मुझको
रखो दवायें अपने पास।

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हेमन्त कुमार