शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

सिंहराज को चढ़ा बुखार


सिंहराज को चढ़ा बुखार
टेम्प्रेचर था एक सौ चार
दर्द हुआ फ़िर पेट में भारी
समझ न पाये वे बीमारी।

धीरे धीरे सिर चकराया
सिर चकराते मन घबराया
वैद्य राज हाथी फ़िर आये
जड़ी बूटियां ढेरों लाये।

रात कौन सी दावत छानी
कहां पिया फ़िर तुमने पानी
सच सच तुम बतलाना भाई
सुनी बात तब डांट लगाई।

गंदा खाना --- गंदा पानी
क्यों करते ऐसी नादानी
अगर चाहते सुख से जीना
अच्छा खाना --- अच्छा पीना।
0000
कवि –कौशल पाण्डेय
हिन्दी अधिकारी
आकाशवाणी,शिवाजीनगर
पुणे—411005


5 टिप्‍पणियां:

  1. यह रचना अपनी एक अलग विषिष्ट पहचान बनाने में सक्षम है।

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  2. कौशल पाण्डेय जी रचना पसंद आई. आपका आभार!!

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  3. कविता तो बहुत बढ़िया है!
    मगर देख लेना कहीम स्वाइन फ्लू तो नही हो गया है।

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  4. गंदा खाना --- गंदा पानी
    क्यों करते ऐसी नादानी
    अगर चाहते सुख से जीना
    अच्छा खाना --- अच्छा पीना।
    ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी! बहुत ही सुंदर और बढ़िया लगा ये कविता!

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