बुधवार, 5 अगस्त 2009

बालगीत -बन्दर जी


कुछ बन्दर मेरे बाग में आये
धमाचौकड़ी खूब मचाये
पेड़ से तोड़ के पत्ती खाये
पापा जी को गुस्सा आए।

नजर पड़ी उनकी गमलों पर
लगे नोचने फ़ूलों को सब
बन्दरों ने गिराई गमले की माटी
पापा ने दे मारी लाठी ।

दुम दबा कर बन्दर भागे
पापा पीछे बन्दर आगे
बन्दर बोले पें पें पें पें
हम सब बोले हें हें हें हें ।
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कु0 नित्या शेफ़ाली का बाल गीत
हेमन्त कुमार द्वारा प्रकाशित

8 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi badhiya...aur pyari si hai ye poem.......really very nice

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  2. नित्या शेफाली को शुभकामनाएँ।
    बन्दर मामा आये बाग में,
    उछल-कूद करते भारी।
    बहुत सुन्दर बाल-गीत लिखा है।

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  3. पापा की लाठी,और बच्चों की मस्ती......बहुत सुन्दर नित्या

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  4. बहुत ही सुंदर और प्यारी कविता है! आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगता है क्यूंकि बच्चों के बारे में कविता या बाल गीत लिखना बहुत कठिन है और बहुत कम पड़ने को मिलता है! शानदार ब्लॉग है आपका! दिल खुश हो जाता है!

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  5. कितने दिन पूर्व लिखी यह बाल कविता सौभाग्य से आज पढ़ पाया brijmohan

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  6. नित्या ने बचपन याद दिला दिया ..बड़ी ही सुंदर रचना.....उसे ढेरों बधाई ..
    बचपन याद दिला दिया ..मेरे घर भी बन्दर आया करते थे ..!

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  7. बहुत सुंदर ब्‍लॉग है। उतना ही सुंदर बाल गीत। बच्‍चों के मधुर कंठ से निकले स्‍वर कितने मनभावन होते हैं।

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