मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

बालगीत -- मुर्गे जी की बांग




मुर्गे जी ने एक दिन सोचा ,बहुत दे चुका बांग,
कुछ दिन मैं भी छुट्टी ले लूँ ,और करुँ आराम।

ओढ़ी चादर तान सुनो फ़िर,क्या हुआ था मामा,
सारे जंगल में मचा था, खूब खूब हंगामा।

बन्दर जी को हो गयी देर,दफ्तर पहुंचे फ़िर वो लेट,
चीते जी उन पर चिल्लाये,गेट आउट फ्राम द गेट।

मुर्गे जी की छुट्टी से ,उलट गए सब काम,
चुन चुन चिडिया ने सुबह की,सब्जी बनाई शाम।

डम्पी हाथी चिंकी बिल्ली,पहुंचे जब स्कूल,
भालू मियां को गुस्सा आया,मार दिया दो रूल।

बोले बच्चों इतनी जल्दी,याद तुम्हें है आई,
सुबह सुबह होती है कक्षा,अब शाम होने को आई।

हो रहा क्या उल्टा पुल्टा,कोई समझ न पाया,
पर बुद्धिमान हाथी काका ने,अच्छा गणित लगाया।

सूरज निकले सुबह सुबह क्यों,चंदा निकले शाम
कल कल करते नदी समंदर ,बिना करे आराम।

टिक टिक करती सुई घड़ी की ,क्यूं करती ना आराम,
क्यूं दिया है हमने इसको,समय सारिणी नाम।

ईश्वर ने सबको बांटे हैं,अपने अपने काम,
पहले अपना काम करो,फ़िर करो आराम।

बहुत हो गया मुर्गा जी,तुमने किए सब फेर,
सुबह का भूला शाम को आए,तो नहीं कहलाती देर।

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कवियत्री:पूनम

हेमंत कुमार द्वारा फुलबगिया पर प्रकाशित।



2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर बालगीत प्रेषित किया है।बधाई।

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  2. बहुत सुन्दर बाल गीत है. यह ब्लॉग,ब्लॉग जगत में बच्चों के लिए एक अच्छा प्रयास है.

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